Saturday, December 17, 2016

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं Garmi-e-hasrat-e-nakam se jal jate hain - Qateel Shifai

Garmi-e-hasrat-e-nakam se jal jate hain -  Qateel Shifai
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चरागों की तरह शाम से जल जाते हैं

बच निकलते हैं अगर अतीह-ए-सय्याद से हम
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफाम से जल जाते हैं

खुदनुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं

शमा जिस आग में जलती है नुमाइश क लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं

जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं

रब्ता बहम पे हमें क्या ना कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैगाम से जल जाता है

                                 - क़तील शिफ़ाई

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