Friday, July 29, 2011

बे-खुदी ले गई कहाँ हम को Be-khudi le gayi kahaan ham ko

Meer Taqi Meer ke Nagme
बे-खुदी  ले  गई  कहाँ  हम  को
देर  से  इंतज़ार  है  अपना

रोते  फिरते  हैं  सारी-सारी  रात
अब  यही  रोज़गार  है  अपना

दे  के  दिल  हम  जो  हो  गए  मजबूर
इसमें  क्या  इख्तियार  है  अपना

कुछ  नहीं  हम  मिसाल-ए-उनका  ले  के
शहर-शहर  इश्तहार  है  अपना

जिसको  तुम  आसमान  कहते  हो
सौ   दिलों  का  गुबार  है  अपना
                                               -मीर तकी मीर

Sunday, July 3, 2011

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ, के: पीटूँ जिगर को मैं ? HairaaN hoon dil ko ro'oon ki peetoon jigar ko main

हैराँ  हूँ  दिल  को   रोऊँ,  के:  पीटूँ  जिगर  को  मैं
मक़दूर  हो  तो  साथ  रखूँ  नोह: गार  को  मैं

छोड़ा  न:  रश्क   ने   के:  तेरे  घर  का  नाम  लूँ
हर  यक  से  पूछता   हूँ  के:  जाऊँ  किधर  को  मैं ?

जाना  पड़ा  रक़ीब  के  दर  पर  हज़ार  बार
ए  काश !  जानता  न:  तेरे  रहगुज़र  को  मैं

है  क्या  जो  कस  के  बाँधिए,  मेरी  बाला  डरे
क्या  जनता  नहीं  हूँ  तुम्हारी  कमर  को  मैं

लो  वो:  भी  कहते  हैं  के: ये:  बे  नंग-ओ-नाम  है
ये: जानता  अगर,  तो  लुटाता  न:  घर  को  मैं

चलता  हूँ  थोड़ी  दूर  हर  इक  तेज़रौ  के  साथ
पहचानता  नहीं  हूँ  अभी  राहबर  को  मैं

ख़्वाहिश  को  अहमक़ों  ने  परस्तिश  दिया  क़रार
क्या  पूजता  हूँ  उस  बूते  बेदादगर   को   मैं ?

फिर  बेखुदी  में  भूल  गया  राहे  कू-ए-यार
जाता  वगर्न: एक  दिन  अपनी  ख़बर  को  मैं

अपने  पे: कर  रहा  हूँ  कियास   अहले  दहर  का
समझा  हूँ   दिल पज़ीर   मताअ-ए-हुनर  को  मैं

ग़ालिब ! खुदा  करे  के:  सवारे  समन्दे  नाज़
देखूँ   अली  बहादुरे   आली  गुहर   को   मैं
                                               - मिर्ज़ा असद-उल्लाह: खाँ  'ग़ालिब'
________________________________________________________________________
मक़दूर=सामर्थ्य;  नोह: गार=मातम करने वाला;  रश्क=इर्ष्या;  रक़ीब=प्रतिद्वंदी(दुसमन); रहगुज़र=मार्ग;
बे नंग-ओ-नाम=बद चलन;  तेज़रौ=तीव्रगामी(तेज़ चलने वाली);  राहबर=मार्ग दर्शक; परस्तिश=पूजना;
बूते  बेदादगर=मस्ती;  राहे  कू-ए-यार=प्रेमी की गली का मार्ग;  कियास=अनुमान;  अहले  दहर=दुनिया वाले;
दिल पज़ीर=मनोवांछित(मन मुताबित);  मताअ-ए-हुनर=कला की सम्पत्ति;  सवारे  समन्दे  नाज़=गर्व के
घोड़े पे सवार;  अली  बहादुरे=ग़ालिब का मित्र;   आली गुहर=अधिक मूल्यवान;