ज़िक्र उस परीवश का, और फिर बयाँ अपना
बन गया रक़ीब आखिर, था जो राज़दाँ अपना
मय वो: क्यूँ बहुत पीते बज़्मे ग़ैर में यारब !
आज ही हुआ मंजूर उन को इम्तिहाँ अपना
मंज़र इक बुलन्दी पर और हम बना सकते
अर्श से इधर होता काश के मकाँ अपना
दे वो: जिस क़दर ज़िल्लत, हम हँसी में टालेंगे
बारे आशना निकला उनका पासबाँ, अपना
दर्दे दिल लिखूँ कब तक, जाऊँ उनको दिखला दूँ
उंगलियाँ फ़िगार अपनी, खाम: खूँ चकाँ अपना
घिसते घिसते मिट जाता, आपने अबस बदला
नंगे सिज्द: से मेरे, संगे आस्ताँ अपना
ता करे न गम्माज़ी , कर लिया है दुश्मन को
दोस्त की शिकायत में हमने हमज़बाँ अपना
हम कहाँ के दाना थे, किस हुनर में यक्ता थे
बेसबब हुआ ‘ग़ालिब’ ! दुश्मन आसमाँ अपना
-मिर्ज़ा असद-उल्लाह: खाँ 'ग़ालिब'
_________________________________________________________________________
परीवश=सुन्दरी; रक़ीब=प्रतिद्वंदी(दुसमन); राज़दाँ=भेद जानने वाला; मय=शराब; बज़्मे=गोष्ठी(महफ़िल);
अर्श=आकास; ज़िल्लत=अपमान; पासबाँ=द्वारपाल(gatekeeper); फ़िगार=घायल; खाम: खूँ चकाँ=खून से
भरा कलम; अबस=व्यर्थ; नंगे सिज्द:=माथे का वह चिन्ह जो सजदः(सजदा)करते करते पड़ जाता है;
संगे आस्ताँ=चौखट का पत्थर; गम्माज़ी=चुगली; हमज़बाँ=अपनी जैसी जुबान वाला,(यहाँ "समर्थक" से अभिप्राय है )
दाना=बुद्धिमान; यक्ता=अद्वितीय(जिसके सामान दुनिया में कोई दूसरा न हो)
बन गया रक़ीब आखिर, था जो राज़दाँ अपना
मय वो: क्यूँ बहुत पीते बज़्मे ग़ैर में यारब !
आज ही हुआ मंजूर उन को इम्तिहाँ अपना
मंज़र इक बुलन्दी पर और हम बना सकते
अर्श से इधर होता काश के मकाँ अपना
दे वो: जिस क़दर ज़िल्लत, हम हँसी में टालेंगे
बारे आशना निकला उनका पासबाँ, अपना
दर्दे दिल लिखूँ कब तक, जाऊँ उनको दिखला दूँ
उंगलियाँ फ़िगार अपनी, खाम: खूँ चकाँ अपना
घिसते घिसते मिट जाता, आपने अबस बदला
नंगे सिज्द: से मेरे, संगे आस्ताँ अपना
ता करे न गम्माज़ी , कर लिया है दुश्मन को
दोस्त की शिकायत में हमने हमज़बाँ अपना
हम कहाँ के दाना थे, किस हुनर में यक्ता थे
बेसबब हुआ ‘ग़ालिब’ ! दुश्मन आसमाँ अपना
-मिर्ज़ा असद-उल्लाह: खाँ 'ग़ालिब'
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परीवश=सुन्दरी; रक़ीब=प्रतिद्वंदी(दुसमन); राज़दाँ=भेद जानने वाला; मय=शराब; बज़्मे=गोष्ठी(महफ़िल);
अर्श=आकास; ज़िल्लत=अपमान; पासबाँ=द्वारपाल(gatekeeper); फ़िगार=घायल; खाम: खूँ चकाँ=खून से
भरा कलम; अबस=व्यर्थ; नंगे सिज्द:=माथे का वह चिन्ह जो सजदः(सजदा)करते करते पड़ जाता है;
संगे आस्ताँ=चौखट का पत्थर; गम्माज़ी=चुगली; हमज़बाँ=अपनी जैसी जुबान वाला,(यहाँ "समर्थक" से अभिप्राय है )
दाना=बुद्धिमान; यक्ता=अद्वितीय(जिसके सामान दुनिया में कोई दूसरा न हो)
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