ख़िरद मन्दो से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फिक्र में रहता हूँ मेरी इन्तहा क्या है
खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले
खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रिज़ा क्या है
नज़र आई मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इसमें
न पूछ ऐ हमनशी मुझसे वो चश्मे-सुर्मा-सा क्या है
नवाए-सुबह गाही ने जिगर खूँ कर दिया मेरा
खुदाया जिस खता की यह सज़ा है वो खता क्या है
- अल्लामा मुहम्मद 'इक़बाल'
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ख़िरद=ज्ञानी ; इब्तिदा=आरंभ ; इन्तहा=अंत ; रिज़ा=भाग्य ; हमनशी=इच्छा ;
चश्मे-सुर्मा=आँख का सुर्मा ; नवाए-सुबह=सुबह की आवाजें ;
कि मैं इस फिक्र में रहता हूँ मेरी इन्तहा क्या है
खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले
खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रिज़ा क्या है
नज़र आई मुझे तक़दीर की गहराइयाँ इसमें
न पूछ ऐ हमनशी मुझसे वो चश्मे-सुर्मा-सा क्या है
नवाए-सुबह गाही ने जिगर खूँ कर दिया मेरा
खुदाया जिस खता की यह सज़ा है वो खता क्या है
- अल्लामा मुहम्मद 'इक़बाल'
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ख़िरद=ज्ञानी ; इब्तिदा=आरंभ ; इन्तहा=अंत ; रिज़ा=भाग्य ; हमनशी=इच्छा ;
चश्मे-सुर्मा=आँख का सुर्मा ; नवाए-सुबह=सुबह की आवाजें ;
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