Saturday, November 6, 2010

शायद नहीं Shaayad Nahi

तुम्हारे चहरे के उल्लास को
चंचलता को
अतीत से खोज रही मेरी बूढ़ी आँखे
जिसमे भरे थे
 गुलमोहर के फूलों के चटक रंग
और तुम्हारे पास होने का अहसास
दबी-दबी सी मधुर आवाज
छुन-छुन करती धीमी सी हंसी
आज भी मेरे ठसा-ठस भरे दिल के
कोने में चिपकी पड़ी है
कच्चे गडारों वाले रास्ते
जो खेतों के बिच गहराते जा रहे हैं
बैलों की घंटियों की रूनझुन आवाज
मेरी जिन्दगी बाजरे के खनखनाते दानो सी
खुशियों से भरी थी
वो सब तुम्हरे आंचल में
तुम्हरी आँखों में मैंने देखा था
प्यार का सरमाया
क्या ऐसे प्यार के हमसफ़र खोजे जा सकते है
और क्या तुम्हरी देहगंध सी मदहोशी
कहीं और मिल पाएगी
शायद नहीं  
                               -इश्वर चंद्र सक्सेना

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