Saturday, December 24, 2016
Saturday, December 17, 2016
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं Garmi-e-hasrat-e-nakam se jal jate hain - Qateel Shifai
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चरागों की तरह शाम से जल जाते हैं
बच निकलते हैं अगर अतीह-ए-सय्याद से हम
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफाम से जल जाते हैं
खुदनुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं
शमा जिस आग में जलती है नुमाइश क लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं
जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं
रब्ता बहम पे हमें क्या ना कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैगाम से जल जाता है
- क़तील शिफ़ाई
बच निकलते हैं अगर अतीह-ए-सय्याद से हम
शोला-ए-आतिश-ए-गुलफाम से जल जाते हैं
खुदनुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ा
जिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं
शमा जिस आग में जलती है नुमाइश क लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं
जब भी आता है मेरा नाम तेरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मेरे नाम से जल जाते हैं
रब्ता बहम पे हमें क्या ना कहेंगे दुश्मन
आशना जब तेरे पैगाम से जल जाता है
- क़तील शिफ़ाई
Friday, December 16, 2016
Thursday, December 15, 2016
तुम जाओ हम से दूर तो एक काम कर जाना Tum jao hum se door to Ek kaam kar jana
तुम जाओ हम से दूर तो एक काम कर जाना
कुछ पल अपने हमारे नाम कर जाना
अगर आ जाए मौत हमें आप क आने से पहले
तो आ कर मेरे जनाज़े का एहतराम कर जाना
ना रोना इश क़दर कि
तकलीफ़ हो हमें
मौत को भी मज़ाक़ समझ कर अंजन बन जाना
मैं एक दिन सो जाऊं गा सदा क लिए
फिर मुझे बेवफा कह कर बदनाम कर जाना
जो गुज़रो मेरी क़बर से तो नज़रें न फेरना
अजनबी ही बन के दुआ सलाम कर जाना
मैं एक ढ़लती हुई शाम उसके नाम लिख रहा हूँ Main ek ḍhaltee hui shaam usake naam likh raha hoon
मैं एक ढ़लती हुई शाम उसके नाम लिख रहा हूँ।
एक प्यार भरे दिल का कत्लेआम लिख रहा हूँ।
एक प्यार भरे दिल का कत्लेआम लिख रहा हूँ।
ता उम्र मैं करता रहा जिस शाम उसका चर्चा,
मैं आज उसी शाम को नाकाम लिख रहा हूँ ।
सोचा था न जाऊँगा जहाँ उम्र भर कभी भी,
उस मैकदे में अब तो हर शाम दिख रहा हूँ ।
हाँसिल न हुआ जिसमें बस गम के शिवा कुछ भी,
मैं उस दीवानेपन का अंजाम लिख रहा हूँ ।
थी हीरे सी चमक मुझमें प्यार के उजाले में,
नफरत के अंधेरों में पथ्थर सा दिख रहा हूँ ।
दुनिया की निगाहों से जिसे था छुपाया करता,
उस बेवफा का नाम सरेआम लिख रहा हू ।
Friday, December 2, 2016
किसी की आँख में आँसू कहीं ठहरा हुआ होगा Kisi ki aankh mein aansoo kahin ṭhahara hua hoga
किसी की आँख में आँसू, कहीं ठहरा हुआ होगा
यकीनन दर्द का दरिया भी वहीँ सूखा हुआ होगा
जमाने की रवायत ने जुदा तुमसे किया मुझको
भरी दुनियाँ लुटी होगी, बड़ा सदमा हुआ होगा
धुँधले पड़े होंगे वो 'अक्स' जो कभी दिल में थे
वक्त की चोट से आईना-ए-दिल चटका हुआ होगा
बना तस्वीर यादों की, लिखे वो खून से गजलें
लिखे खत थे कभी उसने, उन्हें पढता हुआ होगा
कहीं मिल जाए भूले से, न पहचाने मुझे अब वो
उसकी याद का आँसू, कहीं गिरता हुआ होगा
जमाने की रवायत ने जुदा तुमसे किया मुझको
भरी दुनियाँ लुटी होगी, बड़ा सदमा हुआ होगा
धुँधले पड़े होंगे वो 'अक्स' जो कभी दिल में थे
वक्त की चोट से आईना-ए-दिल चटका हुआ होगा
बना तस्वीर यादों की, लिखे वो खून से गजलें
लिखे खत थे कभी उसने, उन्हें पढता हुआ होगा
कहीं मिल जाए भूले से, न पहचाने मुझे अब वो
उसकी याद का आँसू, कहीं गिरता हुआ होगा
Tuesday, November 29, 2016
कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो Kathin hai rahguzar thodi dur sath chalo
कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो।
बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो।
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो।
नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
ये एक शब की मुलाक़ात भी गनीमत है
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो।
तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जाना हमें भी करना है
‘फ़राज़’ तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो।
तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो।
नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
ये एक शब की मुलाक़ात भी गनीमत है
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो।
तवाफ़-ए-मंज़िल-ए-जाना हमें भी करना है
‘फ़राज़’ तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
- अहमद फ़राज़