तुम जानो, तुमको ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
मझको भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो
बचते नहीं मुवाखज़:-ए-रोज़े हश्र से
कातिल अगर रक़ीब है तो तुम गवाह हो
क्या वो: भी बेगुनह: कुश-ओ-हक़ ना शानस है?
माना के: तुम बशर नहीं, खुरशीद-ओ-माह हो
उभरा हुआ निक़ाब में है उनके एक तार
मरता हूँ मैं के: ये: न: किसी की निगाह हो
जब मैकद: छुटा तो फिर अब क्या जगह की कैद
मस्जिद हो, मदरस: हो, कोई खानकाह हो
सुनते हैं जो बहिश्त की तअरीफ़ सब दुरुस्त
लेकिन ख़ुदा करे वो: तेरा जल्व:गाह हो
'ग़ालिब' भी गर न: हो, तो कुछ ऐसा ज़रर नहीं
दुनिया हो यारब, और मेरा बादशाह हो
-मिर्ज़ा असद-उल्लाः खाँ 'ग़ालिब'
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रस्म-ओ-राह=सम्बन्ध; मुवाखज़:=उत्तरदायित्व; रोज़े हश्र=प्रलय का दिन; बेगुनह: कुश=निर्दोशियों
का वधक(मारने वाला); ओ=और; हक़ ना शानस=सत्य को न जानने वाला; बशर=मानव;
खुरशीद-ओ-माह=सूर्य, और चन्द्रमा; निक़ाब=नकाब; कैद=यहाँ कैद से अभिप्राय प्रतिबन्ध से है;
मैकद:=मदिरालय; मदरस:=मदरसा(पाठशाला); खानकाह=आश्रम; बहिश्त=स्वर्ग; तअरीफ़=प्रशंसा;
दुरुस्त=ठीक; जल्व:गाह=दृश्यस्थल; ज़रर=हानि(घाटा)
मझको भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो
बचते नहीं मुवाखज़:-ए-रोज़े हश्र से
कातिल अगर रक़ीब है तो तुम गवाह हो
क्या वो: भी बेगुनह: कुश-ओ-हक़ ना शानस है?
माना के: तुम बशर नहीं, खुरशीद-ओ-माह हो
उभरा हुआ निक़ाब में है उनके एक तार
मरता हूँ मैं के: ये: न: किसी की निगाह हो
जब मैकद: छुटा तो फिर अब क्या जगह की कैद
मस्जिद हो, मदरस: हो, कोई खानकाह हो
सुनते हैं जो बहिश्त की तअरीफ़ सब दुरुस्त
लेकिन ख़ुदा करे वो: तेरा जल्व:गाह हो
'ग़ालिब' भी गर न: हो, तो कुछ ऐसा ज़रर नहीं
दुनिया हो यारब, और मेरा बादशाह हो
-मिर्ज़ा असद-उल्लाः खाँ 'ग़ालिब'
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रस्म-ओ-राह=सम्बन्ध; मुवाखज़:=उत्तरदायित्व; रोज़े हश्र=प्रलय का दिन; बेगुनह: कुश=निर्दोशियों
का वधक(मारने वाला); ओ=और; हक़ ना शानस=सत्य को न जानने वाला; बशर=मानव;
खुरशीद-ओ-माह=सूर्य, और चन्द्रमा; निक़ाब=नकाब; कैद=यहाँ कैद से अभिप्राय प्रतिबन्ध से है;
मैकद:=मदिरालय; मदरस:=मदरसा(पाठशाला); खानकाह=आश्रम; बहिश्त=स्वर्ग; तअरीफ़=प्रशंसा;
दुरुस्त=ठीक; जल्व:गाह=दृश्यस्थल; ज़रर=हानि(घाटा)