Saturday, December 10, 2011

मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें Main unhen chhedoon aur kuchh na kahen-Mirza Ghalib

मैं  उन्हें  छेड़ूँ  और  कुछ  न  कहें
चल  निकलते, जो मय पिए होते

क़हर हो, या बाला हो, जो कुछ हो
काश के तुम मेरे लिए जिए होते!

मेरी क़िस्मत में  ग़म  गर इतना था
दिल भी या रब, कई  दिए  होते

आ ही जाता वो: रह  पर 'ग़ालिब'!
कोई   दिन और  भी  जिए  होते
                                       -मिर्ज़ा असद-उल्ला: खाँ 'ग़ालिब'