Monday, October 24, 2011

बाज़ीचः-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे Bazeecha e Atfal Hai Duniya Mere Aage - Mirza Ghalib

बाज़ीचः-ए-अत्फ़ाल  है दुनिया मेरे आगे
होता है  शब-ओ-रोज़  तमाशा मेरे आगे

इक खेल है औरंगे-ए-सुलेमाँ मेरे नज़दीक
इक बात है  एजाज़े मसीहा मेरे आगे

जुज़ नाम, नहीं सूरते आलम मुझे मंजूर
जुज़ वहम  नहीं, हस्ति-ए-आशिया मेरे आगे

होता है निहाँ  गर्द में सहरा, मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे: दरिया मेरे आगे

मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू  देख  के: क्या रंग  है तेरा मेरे आगे

सच कहते  हो, खुदबीन-ओ-खुदआरा  हूँ, न: क्यूँ हूँ ?
बैठा  है  बूते  आईन:  सीमा  मेरे  आगे

फिर  देखिए अन्दाज़े  गुलअफ्शानि-ए-गुफ़्तार
रखदे  कोई  पैमान:-ए-सहबा  मेरे  आगे

नफ़रत  का  गुमाँ  गुज़रे  है,  मैं रश्क से गुज़रा
क्यूँकर कहूँ, लो नाम  न: उनका  मेरे आगे

ईमाँ  मुझे  रोक है, जो खेंचे  है  मुझे कुफ्र
कअब:  मेरे  पीछे है कलीसा मेरे आगे

आशिक़ हूँ, पे: माशूक फ़रेबी है मेरा काम
मजनूँ  को  बुरा  कहती  है लैला मेरे आगे

खुश  होते  हैं, पर  वस्ल में यूँ  मर  नहीं  जाते !
आई  शबे  हिजराँ  की  तमन्ना  मेरे  आगे

है  मौजज़न  इक कुल्जुमे खूँ, काश ! यही हो
आता  है  अभी देखिए  क्या-क्या मेरे आगे

गो  हाथ  को  जुंबिश  नहीं, आखों में तो दम है
रहने  दो अभी  सगार-ओ-मीना  मेरे  आगे

हमपेश:-ओ-हम  मशराब-ओ-हमराज़  है  मेरा
'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ  कहो अच्छा  मेरे आगे
                                                         -मिर्ज़ा असद-उल्लाह: खाँ  'ग़ालिब'

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बाज़ीचः-ए-अत्फ़ाल=बच्चों के खेल का मैदान;  शब-ओ-रोज़=दिन रात;  औरंगे-ए-सुलेमाँ='सुलेमान' अवतार का सिंहासन; एजाज़े मसीहा=ईसा(jesus) का चमत्कार;  जुज़(सिवा) नाम=नाम के अतिरिक्त;
सूरते आलम(संसार)=संसार रूप;  जुज़ वहम=भ्रम के सिवा;  हस्ति-ए-आशिया=वस्तुओं का अस्तित्व; निहाँ=गुप्त; गर्द=धूल; सहरा=जंगल; जबीं=माथा; ख़ाक=मिट्टी(धरती);
खुदबीन-ओ-खुदआरा=अभिमानता और खुद को अलंकृत करने वाला;  बूते  आईन:=प्रेमिका का आईन; सीमा=खास कर;  अन्दाज़े  गुलअफ्शानि-ए-गुफ़्तार =बातों से फूल बरसने के समान;
पैमान:-ए-सहबा=अंगूरों की शराब का प्याला;   गुमाँ=संभावना; रश्क=ईर्ष्या; ईमाँ=धर्म; कुफ्र=अधर्म(पाप); कअब:=काबा(मुसलमानो का तीर्थ स्थल );  कलीसा=गिरजा(ईसाईयों का पूजा स्थल);
माशूक फ़रेबी=धोका देने वाला;  वस्ल=मिलन; शबे  हिजराँ=विरह की रात्रि; मौजज़न=लहरें मारने वाला; कुल्जुमे खूँ=खून का दरिया;  जुंबिश=हिलना;  सगार-ओ-मीना=जाम और सुराही;
हमपेश:=जो कार्य मैं करूँ वही दूसरा करे; ओ=और;  हम  मशराब=मेरे ही स्वभाव का;
हमराज़=यहाँ  'भेदी' से अभीप्रयाय है;

Monday, October 10, 2011

ज़िक्र उस परीवश का, और फिर बयाँ अपना Jikra us parivash ka aur fir bayaan apna

ज़िक्र  उस  परीवश  का, और  फिर  बयाँ  अपना
बन  गया  रक़ीब  आखिर,  था  जो  राज़दाँ  अपना

मय  वो:  क्यूँ  बहुत  पीते  बज़्मे  ग़ैर  में  यारब !
आज  ही  हुआ  मंजूर  उन  को  इम्तिहाँ  अपना

मंज़र  इक  बुलन्दी  पर  और  हम  बना  सकते
अर्श  से  इधर  होता  काश  के  मकाँ  अपना

दे  वो: जिस  क़दर  ज़िल्लत,  हम  हँसी  में  टालेंगे
बारे  आशना  निकला  उनका  पासबाँ,  अपना

दर्दे  दिल  लिखूँ  कब  तक, जाऊँ  उनको  दिखला  दूँ
उंगलियाँ  फ़िगार  अपनी,  खाम: खूँ  चकाँ  अपना

घिसते  घिसते  मिट  जाता,  आपने  अबस  बदला
नंगे  सिज्द:  से  मेरे,  संगे  आस्ताँ  अपना

ता  करे  न  गम्माज़ी , कर  लिया  है  दुश्मन  को
दोस्त  की   शिकायत  में  हमने  हमज़बाँ  अपना

हम  कहाँ  के  दाना  थे,  किस  हुनर  में  यक्ता  थे
बेसबब  हुआ ‘ग़ालिब’ ! दुश्मन  आसमाँ  अपना
                                                           -मिर्ज़ा असद-उल्लाह: खाँ  'ग़ालिब'
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परीवश=सुन्दरी; रक़ीब=प्रतिद्वंदी(दुसमन);  राज़दाँ=भेद जानने  वाला; मय=शराब;  बज़्मे=गोष्ठी(महफ़िल);
अर्श=आकास; ज़िल्लत=अपमान;  पासबाँ=द्वारपाल(gatekeeper); फ़िगार=घायल; खाम: खूँ  चकाँ=खून से
भरा कलम; अबस=व्यर्थ; नंगे  सिज्द:=माथे का वह चिन्ह जो सजदः(सजदा)करते करते पड़ जाता है;
संगे  आस्ताँ=चौखट का पत्थर; गम्माज़ी=चुगली; हमज़बाँ=अपनी जैसी जुबान वाला,(यहाँ "समर्थक" से अभिप्राय है )
दाना=बुद्धिमान;  यक्ता=अद्वितीय(जिसके सामान दुनिया में कोई दूसरा न हो)