Saturday, June 4, 2011

अजब नशात से, जल्लाद के चले हैं हम आगे Ajab nashat se jallad ke chale hain hum aage-Galib

अजब  नशात  से, जल्लाद के चले  हैं  हम आगे
के: अपने साये से सर, पाँव से है दो कदम आगे

कज़ा  ने  था  मुझे  चाहा  ख़राबे  बादः-ए-उल्फ़त
फ़क़त  'ख़राब' लिखा, बस नः चल सका कलम आगे

ग़मे  ज़मानः ने  झाड़ी  नाश्ते  इश्क़  की मस्ती
वगर्न: हम भी उठाते थे लज्ज़ते  अलम  आगे

खुदा  के  वास्ते  दाद  इस जुनूने शौक़ की देना
के  उसके  दर  पे: पहोंचते हैं नामःबार से हम आगे

ये:  उम्र  भर  जो  परीशानियाँ  उठाई  हैं  हमने
तुम्हारे आइयो  ऐ  तुर्र: हाए ख़म  बः  ख़म, आगे

दिल-ओ-जिगर  में  परअफशाँ जो एक  मौज:-ए-खूँ  है
हम  अपने  ज़ओम में समझे हुए थे उसको दम आगे

क़सम  जनाज़े  पे: आने  की  मेरे  खाते  हैं  'ग़ालिब'
हमेशा: खाते  थे  जो  मेरी जान  की  क़सम, आगे 

                                        -मिर्ज़ा असद-उल्लाः खाँ  'ग़ालिब'

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नशात=हर्ष;  कज़ा=मौत;  ख़राबे  बादः-ए-उल्फ़त=मदिरा की चाहत मे नष्ट;  ग़मे  ज़मानः=दुनिया के दुःख;
नाश्ते  इश्क़=प्रेम का हर्ष (खुसी);   लज्ज़ते  अलम=दुखों का आनंद;  नामःबार=डाकिया;  
तुर्र: हाए ख़म  बः  ख़म=घूँघरियली बालों की लटें;   परअफशाँ=व्याकुल (बेचैन);
    मौज:-ए-खूँ=खून की लहर;  ज़ओम=घमंड;   दम=सांस;           

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