Saturday, November 6, 2010

हम दीवानों की क्या हस्ती Ham Deewanon ki kya Hasti

हम दीवानों की क्या हस्ती
है आज यहाँ , कल वहाँ चले
मस्ती का आलम साथ चला
हम धुल उड़ाते जहाँ चले
              आए बनकर उल्लास अभी
              आंसू बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गए , अरे
तुम कैसे आए , कहाँ चले !
किस ओर चले ? यह मत पूछो
चलना है , बस इसलिए चले
जग से उसका कुछ लिए चले
जग को अपना कुछ दिए चले
              दो बात कही दो बात सुनी !
              कुछ हंसे और फिर कुछ रोए !
छककर सुख-दुःख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले !
              हम भिखमंगों की दुनिया में
              स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले
              हम एक निशानी-सी उर पर
              ले असफलता का भर चले
हम मान रहित , अपमान रहित
जी भरकर खुलकर खेल चुके
              हम हँसते-हँसते आज यहाँ
              प्राणों की बाजी हार चले !
हम भला बुरा सब भूल चुके
नत मस्तक हो मुख मोड़ चले
अभिशाप उठा कर होंठों पर
वरदान दृगों पर छोड़ चले
               अब अपना क्या पराया क्या ?
               आबाद रहें रुकने वाले !
हम स्वयंम बँधे थे और स्वयंम
हम अपने बंधन तोड़ चले !
    

1 comment:

  1. यह कविता भगवती चरण वर्मा जी की है |

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