Wednesday, October 27, 2010

हर एक बात पे कहते हो तुम के तू क्या है Har Ek Baat Pe Kahte Ho Tum ke Tu Kya Hai

हर एक बात पे कहते हो तुम, के  तू क्या है
तुम्ही कहो के ये अंदाजे गुफ्तगू क्या है

न शोले में ये करिश्म न बर्क में ये अदा
कोई बताओ के वो शोखे तन्द्खु क्या है

ये रश्क है के वो होता है हमसुखन तुमसे
वगर्न खौफे बदआमोजी -ए-अदू क्या है

चिपक रहा है बदन पर  लहू से पैराहन
हमारे जैब को अब हाजते रफू क्या है

जलता है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब रख, जुस्तजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

वो चीज जिसके लिए हो हमको बहिश्त अज़ीज़
सिवाय बाद-ए-गुलफामे मुश्कबू , क्या है

पियूँ शराब अगर खुम भी देख लूँ दो चार
ये शीशा-ओ-कदह-ओ-कूज ओ सुबू क्या है

रही न ताकते गुफ्तार , और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पर कहिये के आरजू क्या है

हुआ है शाह का मुशाहिब,फिरे है इतराता
वगर्न शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है
                                           -असदुल्ला खान मिर्जा ग़ालिब
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अंदाजे गुफ्तगू=बात करने का ढंग;  बर्क=बिजली;  शोखे तन्द्खु=क्रुध स्वभाव की
चंचलता; रश्क=इर्ष्या; हमसुखन=बात करना; खौफे बदआमोजी -ए-अदू=शत्रु की
अबभद्र शिक्षा का डर;  हाजते रफू=रफू की आवश्यकता; बहिश्त=स्वर्ग; अज़ीज़=
प्रिय;  बाद-ए-गुलफामे मुश्कबू=फूलों जैसे रंग एंव मुश्क की सुगंध के सामान मदिरा;
खुम=शराब का मटका; शीशा-ओ-कदह-ओ-कूज ओ सुबू=बोतल,प्याला,एंव कुल्हड़,मटका
गुफ्तार=बात करने की शक्ति; शाह=बादशाह; मुशाहिब=सभासद; आबरू=इज्जत;

   

  

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