Tuesday, October 26, 2010

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है ye hum jo hijr mein diwar-o-dar ko dekhte hain

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है
कभी सबा को कभी नामःबार को देखते है

वो आए घर में हमारे,खुदा की कुदरत है
कभी हम उनको,कभी अपने घर को देखते है

नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाजू को
ये लोग क्यूं मेरे ज़ख़्म जिगर को देखते है

तेरे जवाहिरे तर्फे कुल को क्या देखें
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहार को देखते है

जहाँ तेरा नक़्शे कदम देखते है
खियाबां-खियाबां इरम देखते है

दिल अशुफ्तगां खाले कुंजे दहन के
सुवैदा में सैरे अदम देखते हैं

तेरे सरू कामत से यक कद्दे आसद
क़यामत के फ़ितने को कम देखते हैं

तमाश के ऐ महवे आईन दारी!
तुझे किस तम्मना से हम देखते है

सुरागे तुफे नाल ले दागे दिल से
के शबरौ का नक़्शे कदम देखते है

बनाकर हम फकीरों का भेस 'ग़ालिब' !
तमाशः-ए-अहले करम देखते है
                             -असदुल्ला खान मिर्जा ग़ालिब
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हिज्र=विरह(जुदाई), सबा=ठंडी हवा, नामःबार=पत्र वाहक(डाकिया)
दस्त-ओ-बाजू=हाथ और पाँव, जवाहिरे तर्फे कुल=टोपी में टंके हीरे,
औजे तअले लाल-ओ-गुहार=हीरे जवाहरात के भाग्य की प्रतिष्ठा,
खियाबां-खियाबां=फूलों की क्यारी,  इरम=स्वर्ग, दिल अशुफ्तगां=दीवाना दिल,
खाले कुंजे दहन=मुह के कोने का तिल, सुवैदा=काला धब्बा(यहाँ तात्पर्य आँख की
पुतली के तिल से है), सैरे अदम=यम लोक की सैर, सरू कामत=इतना लम्बा के
सरो वृक्ष के सामान, कद्दे आसद=हज़रत आदम(पहला मानव)का कद, फ़ितने=उपद्रव,
महवे आईन दारी=आइना देखने में लीन, तुफे नाल=आर्तनाद(धिक्कार), शबरौ=रात्रि में
चलने वाला, करम=कृपालु,  

  

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