Monday, October 25, 2010

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक Aah ko chahiye ek umr asar hone tak

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक

दामें हर मौज में है हल्क-ए-सदकामे निहंग
देखें क्या गुजरे है कतरे पे गुहर होने तक

आशिकी सब्र तलब और तम्मना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ खूने जिगर होने तक

हमने माना के तगाफुल न करोगे,लेकिन
खाख हो जाएँगे हम,तुमको खबर होने तक

परतवे खूर से है सबनम को फ़ना की तअलीम
में भी हूँ एक इनायत की नजर होने तक

यक नज़र बेश नहीं फुर्सते हस्ती गाफ़िल
गर्मि-ए-बज़्म है इक रक्से शरर होने तक

गमे हस्ती का 'असद' ! किससे हो जुज मर्ग,इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होने तक         
                                               -असदुल्ला खान मिर्जा ग़ालिब
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दामें हर मौज=हर एक लहर का जाल , हल्क-ए-सदकामे निहंग =सैकड़ों
मगरमच्छ के खुले जबड़े, कतरे=बूँद, गुहर=मोती हीरा ,सब्र तलब=धैर्य
की चाहत, तम्मना बेताब=बेताब तम्मना, तगाफुल=असावधानी
परतवे खूर=सूर्य की किरण,सबनम=ओस, फ़ना की तअलीम=मर मिटने की तालीम
इनायत=कृपा .दया, बेश=अधिक, फुर्सते हस्ती=जीवन की कार्य रिक्ता,
शरर=चिंगारी का नृत्य, गमे हस्ती=जीवन का दुख, 'असद'=एक व्यक्ति का नाम
जुज=सिवाय, मर्ग=मृत्यु, सहर=प्रातः काल(सुबह)
गाफ़िल=निशिचत, गर्मि-ए-बज़्म=सभा की चहल-पहल(बज़्म=सभा,गोष्ठी)

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