हज़ारों खाव्हिशें ऐसी, की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान,लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यों मेरा कातिल,क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खूं जो चश्मे-तेर-से उम्र-भर यूं दम-ब-दम निकले
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बहुत बे आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे कामत की दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेचोख़म का पेचोख़म निकले
मगर लिखवाए कोई उसको ख़त,तो हमसे लिखवाए
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
हुई इस दौर में मंसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना,जो जहाँ में जामें-जम निकले
हुई जिनको तव्वको ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़े सितम निकले
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीतें हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
खुदा के वास्ते पर्दा न काबे का उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा न हो यां भी वही काफ़िर सनम निकले
कहाँ मैखाने का दरवाजा 'ग़ालिब',और कहाँ वाईज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था की हम निकले
-असदुल्ला खान मिर्जा ग़ालिब
बहुत निकले मेरे अरमान,लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यों मेरा कातिल,क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खूं जो चश्मे-तेर-से उम्र-भर यूं दम-ब-दम निकले
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बहुत बे आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे कामत की दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेचोख़म का पेचोख़म निकले
मगर लिखवाए कोई उसको ख़त,तो हमसे लिखवाए
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
हुई इस दौर में मंसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना,जो जहाँ में जामें-जम निकले
हुई जिनको तव्वको ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़े सितम निकले
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीतें हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
खुदा के वास्ते पर्दा न काबे का उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा न हो यां भी वही काफ़िर सनम निकले
कहाँ मैखाने का दरवाजा 'ग़ालिब',और कहाँ वाईज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था की हम निकले
-असदुल्ला खान मिर्जा ग़ालिब
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